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Kabira, at his best
Monday, July 18, 2011
गुरु गोविंद
गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागूं पाँय ।
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो मिलाय ॥
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का करी सकत कुसंग
यहां तू किसके लिए बैठा है
रहिमह ओछे नरन सो, बैर भली ना प्रीत।काटे चाटे स्वान...
रहिमन देख बड़ेन को
तरुवर फल नहिं खात है
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गुरु रूठे नहीं ठौर
गुरु गोविंद
मनवा तो पंछी भया
तिनका कबहुँ ना निंदिये
बड़ा हुआ तो क्या हुआ
गुरु
साईं इतना दीजिए
बुरा जो
रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।हीरा जन्म अमोल ...
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